पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय खंड 3.djvu/१८४

यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

________________

उसे देखते ही उठ खड़ी हुई, बोली-वावा । तुमने कहा था, आज मुझे बाजार लिवा चलने का, अब ता रात हुआ चाहती है ? कल चतूंगा चेटी? ---कहते हुए बदन ने अपने मुंह पर हँसी ले आन को चेप्टा की, क्योकि यह उत्तर मुनने के लिए गाला के मान का रग गहरा हो चता था । वह बालिका के सदृश ठुनुककर बोली-तुम तो वहाना करते हो। नही, नही, कल तुझे लिया ले चलूंगा। तुझे क्या लेना है, सा तो बता । मुझे दा पिंजडे पाहिए, कुछ सूत और रंगीन कागज । अच्छा कल लाना। बटी और बाप का यह मान निपट गया । अब दोना अपनी झापडी में आये और रूखा-सूखा पाने-पीने म लग गये। १५६ . प्रसाद वाड्मय