पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय खंड 3.djvu/१८०

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मरी माँ ने कहा-अब शाक करके क्या होगा, धीरज को आपदा म न छाडना चाहिए। यह तो मरा भाग है कि इस समय म तुम्हारी सेवा के लिए किसी तरह मिल गई । जब सब भूल जाना चाहिए । जो दिन बच हैं, मालिक के नाम पर काट लिए जायेंगे। मिरजा ने एक लम्बी साँस लेकर कहा- शवनम ? मैं एक पागल था-मन समझा था, मर सुखा वा अन्त नही, पर आज ? कुछ नही, कुछ नही, मर मालिक ! मव अच्छा है सब अच्छा होगा। उसकी दया म सन्देह न करना चाहिए। अव म भी पास चली आई थी, मिरजा न मुझे दखकर सक्त स पूछा। मां न कहा--इसी दुखिया को छ महीन का पेट में लिए मैं यहा आई थी और यही धूल मिट्टी म खलती हुई यह इतनी बडी हुई । मर मालिक | तुम्हार विरह म यही तो मेरी आँखा की ठडक थी-तुम्हारी निशानी । मिरजा ने मुझे गल म लगा लिया । मा न कहा-~~वटी । यही तरे पिता है। मैं न जान क्या रोन लगी। हम सब मिलकर बहुत राय । उस रान म बडा मुख था । समय न एक साम्राज्य को हाथो म लकर दूर कर दिया बिगाड दिया पर उसन एक झापडी क कान म एक उजडा हुआ स्वर्ग बसा दिया। हम लागा क दिन मुख से बीतन लगे। गांव-भर म मिरजा व आ जान से एक आतक छा गया। मरे नाना का बुढापा चैन से कटन लगा। सामनाथ मुझे हिन्दी पढाने लग और मैं माता-पिता की गोद में सुख म बढन लगी। मुख के दिन बडी शीघ्रता स खिसकत है । एक वरस क सब महीन देखते दखत बीत गय । एक सध्या म हम सब लोग अलाव के पास बैठे थ । किवाड वन्द थे । सरदी स काई उठना नही चाहता था। आस से भीगी रात भारा मालूम होती थी। धुआँ जोस के बोझ से ऊपर नही उठ सकता था। सोमनाथ ने कहा--आज बरफ पडेगा ऐसा रग है। उसी समय बुधुआ ने आकर कहा--- और डाका भी। सब लोग चौकन्न हो गये । मिरजा न हँसकर कहा-ता क्या तू ही उन सबा का भेदिया है। नहीं सरकार | यह दश ही एसा है, इसम गूजरा की बुधुआ की वात काटते हुए सामदव ने कहा-हा-हाँ यहा के गूजर बड भयानक है। १५२ प्रसाद वाडमय