पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय खंड 3.djvu/१६७

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बजाने लगा। वसी के विलम्बित मधुर स्वर से सोई हुई वनक्ष्मी का जगाने लगा। वह अपने स्वर में आप हा मस्त हो रहा था । उसी समय गाला न जाने कैसे उसके समीप आकर खडी हा गई। नये ने बसी बजाना बन्द कर दिया । वह भयभीत होकर देखने लगा। गाला ने कहा-तुम जानते हो कि यह कौन स्थान है? जगल है मुझस भूल हुई। नहीं यह व्रज की सीमा क भीतर है । यहा चादनी रात म बासुरा बजान स गोपिया की आत्माएँ मचल उठती है । तुम कौन हा गाना। मैं नहीं जानती पर मर मन म भी ठेस पहुचती है । तव में न बजाऊगा। नहीं नये । तुम वजाआ वडी मुन्दर वजता थी । हा वावा कदाचित् क्राध कर। अच्छा तुम रात का या ही निकलकर घूमती हा । इस पर तुम्हार बाबा न क्रोध करगे? हम लोग जगली है । जकेल ता मै कभी कभी आठ आठ दस-दस दिन इसी जगल म रहती हूँ। अच्छा तुम्हे गोपियों को वात केस मालूम हुई ? क्या तुम नाग हिन्दू हो ? इन गूजरा स तो तुम्हारी भाषा भिन्न है । आश्चय स दखती हुइ गाला न कहा-क्या इसम भी तुमका मन्देह है । मरी माँ मुगल होने पर भी कृष्ण स अधिक प्रेम करती थी । अहा नय । मै किसी दिन उसकी जीवनी मुनाऊँगी । वह गाला | तब तुम मुगलानी मा से उत्पन हुई हो। क्रोध से देखती हुई गाला ने कहा -तुम यह क्या नहीं कहत कि हम लोग मनुष्य हैं। जिस सहृदयता स तुमन मरी विपत्ति म सेवा की है गाना । उस दखकर ता मैं कहूगा कि तुम देव बालिका हो ।-नय का हृदय सहानुभूति की स्मृति म भर उठा था ! नहा नही मै तुमका अपनी माँ की लिखी हुई जीवनी पढन को दूगी और तब तुम समझ जाआगे । चना रात अधिक वात रही है पुआल पर सा रहो । --गाला न नय का हाथ पकड़ लिया दोना उस चन्द्रिका धौत शुभ्र रजनी म ककाल १३६