पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय खंड 3.djvu/१२८

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आया । और उस समय में बरावर चिल्ला रहा था-'बाप ! वाघ ।' लोग भयभीत होकर भागने लगे। मैंने देखा कि मेरा निश्चित वालक वही पहा है। उसको मां अपने साथियो वो उसे दिखापर किमी आवश्यक काम में दो-चार मिनट के लिये हट गई थी। उसी समय भगदड का प्रारम्भ हुआ था। मैंन झट उस लडकी को वही रखकर लड़के को उठा लिया और फिर कहने लगा--देगे यह विसकी लडकी है । पर उस भीड मे कौन क्मिको मुनना था । मैं एक सांस म अपनी झोपडी की ओर आया और हमते-हंसते विधवा की गोद म लडकी के बदले लडका देकर अपने को सिद्ध प्रमाणित कर मका। यहां पर यह कहने की आवश्यक्ता नहीं कि वह स्त्री किस प्रकार उम नडके का ले आई । बच्चा भी छोटा था, ढंककर विसी प्रकार हम लोग निर्विघ्न लौट आय । विधवा का मैंने ममझा दिया था कि तीन दिन तक बोई इसका मुंह न देख सके, नहीं ता फिर लड़की बन जाने की सभावना है। मैं वराबर उस मेले में घूमता रहा और अब उस लडकी की खाज म लगा। पुलिस न भी खोज की, पर उसका कोई लेनेवाला न मिला । मैंने देखा कि एक निस्सन्तान चौर की विधवा न उम उडको को पुलिस वालो स पालने के लिए मांग लिया । और मैं अव उसके साथ चला। उमे दूसरे स्टीमर पर बैठा कर ही मैंन मांस ली। सन्तान प्राप्ति म मैं उमका भी महायक था। मैंने देखा कि यही सरला, जो आज मुझे भिक्षा दे रही है लडके के लिए वरावर रोती रही पर मरा हृदय पत्थर था, न पिघला । नागो न बहुत कहा कि तू इस लड़की को हो रेकर पाल-पास, पर उस ता गाविन्दी चौवाइन की गोद म रहना था। ____घटी अकस्मात् चौक उठी-क्या कहा । गोविन्दी चौबाइन ? हाँ गाविन्दी उम चौबाइन का नाम गोविन्दी था ? -जिसने उस लडकी का अपनी गाद म लिया-अधे ने कहा। ___ घण्टी चुप हा गई । विजय ने पूछा-क्या है घण्टी? घण्टी ने कहा---गोविन्दी तो भरी माता का नाम था । और वह यह कहा वरती तुझे मैंने अपनी ही लडकी-सा पाला है । ___ सरला ने पूछा-क्या तुमको गाविन्दी ने कही स पाकर ही पान-पास कर बडा किया, वह तुम्हारी मां नही थी ? घण्टी-नही । वह आप भी यजमानो को भीख पर जीवन व्यतीत करती रही और मुझे भी दरिद्र छोड गई। विजय न कौतुक से कहा-तव ता घण्टी, तुम्हारी माता का पता ग सकता है ? क्यो जी बुड्ढे । तुम यदि इनको वही लडकी समझा, जिसका तुम बदला ६६: प्रसाद वाङ्मय