पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय खंड 3.djvu/११९

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ताप द्वारा प्रायश्चित्त हान पर शीघ्र ही उन कर्मों का योशु क्षमा कगता है और इसके लिए उसन अपना अग्रिम रक्त जमा कर दिया है। पिता | म ता समझती है कि यदि यह सत्य हा ता भी इसका प्रचार न हाना चाहिए क्योकि मनुष्य का पाप करने का जाथय मिलेगा। वह अपन उत्तरदायित्व स इट्टा पा जायगा-सरना न दृढ स्वर में कहा । एक क्षण क लिए पादरी चुप रहा । उसका मुह तमतमा उठा। उसन कहा-अभी नही सरला | कभी तुम इस सत्य का समझोगी। तुम मनुष्य क पश्चात्तापपूर्ण एक दीर्घ निश्वास का मूल्य नही जानती हो-प्रार्थना म युकी हुई ऑखो के आँसू की एक बूद का रहस्य तुम नही समझती ।। मै ससार की सताई हैं ठोकर खाकर मारी मारी फिरता है। पिता । भग वान् क क्रांध को उनक याय का, मै आँच पसार कर नती हूँ। मुझ इसम कायरता रहा सताता । म अपन क्मफल वा सहन करन क निए वज़ क समान सघल, कठार हूँ। अपना दुवलता क लिए वृतज्ञता का वाझ ना भरा नियति न मुपे नहीं सिखाया। में भगवान म यही प्राथना करती हूँ कि यदि तरी इच्छा पूर्ण हा गई इस हाड माम म इस चेतना का रखन । दण्ड की अवधि पूरी हा गई ता एक वार हँस नि मन तुप उत्पन परम भर पाया। कहते रहत सरला क मुख पर एक अलौविक आत्म विश्वास, एक सतेज दीप्ति नाच उठी । उस दसकर पादरो भी चुप हा गया । लतिका और वाथम भी स्तब्ध रह । सरला व मुख पर थोड ही समय म पूर्व भाव नौट आया। उसन प्रकृतिस्थ हाते हुए विनीत भाव स पूछा-पिता । एक प्याली चाय ल जाऊँ। वारमन मा वात वदतन के लिए सहसा कहा-पिता | जब तक आप चाय पियें तब तक पवित्र कुमारी का एक सुन्दर चित्र-जा सभवत क्सिी पुतगाली चित्र की---किसी हिन्दुस्तानी मुसव्वर की बनाइ प्रतिकृति ह -लाकर दिख'नाऊँ सैकडा बरस स कम का न होगा। हा यह ता मैं जानता हूँ कि तुम प्राचीन कना-सम्वधी भारतीय वस्तुमा का व्यवसाय करन हो । और जमरीका तथा जमनी म तुमन इस व्यवसाय म बडी मुख्याति पाई है परन्तु आश्चय है कि एस चित्र भी तुमको मिल जाते है । में अवश्य दखूगा । --कहकर पादरी कुरसी स टिक गया । सरना चाय लान गई और बाथम चित्र । लतिका न जैस स्वप्न देखकर आँख खाली । सामन पादरी का दखकर वह एक वार फिर आपे म जाई । बाथम न चित्र गतिका क हाथ म देकर कहा- मैं तम्प लता आऊँ। बूढे पादरी न उत्सुक्ना दिखलात हुए सध्या क मनिन आलाक में ही उस ककाल ८६