पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय खंड 1.djvu/७२२

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पिंगल क्षण भर में सब परिवर्तित अणु अणु थे विश्व कमल के पराग से मचले आनद सुघा रस छलके । अति मधुर गधवह बहता परिमल वृंदा से सिंचित, सुख स्पश कमल केसर का कर आया रज से रजित । असस्य मुकुलो का मादन विकास कर आया, अधरो का कितना चुवन भर लाया। उनके अछूत रुक रुक कर कुछ इठलाता जैसे कुछ हो वह भूला, नव क्नक - कुसुम- रज धूसर पकरद जलद सा फूला। आनद ॥७०१॥