पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय खंड 1.djvu/६९६

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करते हैं मन्तोप नही है जैसे गावात प्रेरित से- प्रति क्षण परते हो जाते है भीति विवश ये सब कपित से। नियति चलाती बम चक्र यह तृष्णा जनित ममत्व वासना, पाणि- पादमय पचभूत की यहां हो रही है उपासना । यहाँ सतत सघप विफलता कोलाहल का यहा राज है, अघार म दौड लग रही मतवाला यह सब समाज है । स्थूर हो रहे स्प बना कर वर्मा की भीपण परिणति है, आकाक्षा की तीव्र पिपासा । ममता की यह निमम गति है। यहाँ शासनादश घोषणा विजयो की हुकार सुनाती, यहा भूल से विक्ल दलित को पदतल म फिर फिर गिरवाती। रहस्य ।। ६७७॥