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त त साग गम्ति था। युगुमो या स्लवा गिग यगा हंगा नगरमा frr मपुर हगे प्रसार मे पूगि उर यहो माया गरिता पर उरतोषिो पी लेर हर नियरे स्तर पर गया दुग्न्य आती पुपो जाती तुरन्न । सरिता या यह एपात पर, था पवन हिडोल रहा भर धीरे धीर एहरा या सट से टयरा हाता मोगल, छप छप पा होता शब्द विरल थर थर पंप रहती दीप्ति सरल, मसृति अपने मे रही भूर वह गध विधुर मम्लान फूल । प्रसाद वाङ्गमय ॥ ६५६ ॥