पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय खंड 1.djvu/६५३

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"ठहरो चुछ तो बर याो दो रिवा चलंगी तुरत तुम्हा इतने क्षण तक" श्रदा वोगे "रहने देगी क्या 7 हम 2 इडा मा उपर मढी यो पर अधिकार 7 छ7 मरी, श्रद्धा अविल, मा अव चोर उसी वाणी नहीं की। . "जब जीवन में साध भरी थी उच्छवल अनुरोध भरा, अमिलापाएँ भरी हृदय मे अपनेपन का बोध भरा। मैं था, सुन्दर फुसुमो की वह सघन सुनहली छाया थी, मलयानिल की लहर उठ रही उल्लासो को माया थी! प्रसाद वाङ्गमय ॥ ६३०॥