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"विन्तु, वही मेरा अपराधी जिसका वह उपारी था, प्रक्ट उसी से दोप हुआ है जो सर या गुणागे था। सग अधुर अरे रे दो। पल्लव हैं य भल बुर, एक दूसरे की सीमा हैं क्या न युगल का प्यार करें। 'अपना हो या औरो का सुस बढा कि बम दुस बना वही, कौन विन्दु है रुक जाने का यह जैसे कुछ ज्ञात नही । प्राणी निज भविष्य चिन्ता म वत्तमान या सुख छोडे, दौड चला है विखराता सा अपने ही पथ में रोडे । प्रसाद वाङ्गमय ।। ६२०॥