पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय खंड 1.djvu/५७६

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लेती, प्रिय को ठुकरा कर भी मन की माया उलझा प्रणय शिला प्रत्यावत्तन मे उसको लोटा देती। जलदागम मारत से कम्पित पल्लव सदृश हथेमी, श्रद्धा की, धीरे से मनु ने अपने कर मे ले ली। की छाया अनुनय वाणी में, आंखो मे उपालभ कहने लगे "अरे यह कमी मानवती की माया। स्वर्ग बनाया है जो मैंने उसे न विफल बनायो अरी अप्सरे। उम अतीत के नूतन गान सुनाओ। नम इस निजन मे ज्योत्स्ना पुलक्ति विधुयुत केवल हम तुम और वोन है ? रहो के नीचे न आंखें मोचे। समmu