पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय खंड 1.djvu/५३८

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उसी मे विधाम माया का अचल यावास, अरे यह सुख नीद केसी, हो रहा हिम हाम । वामना की मधुर छाया । स्वास्थ्य बल विश्राम । हृदय की सौंदय्य प्रतिमा । कौन तुम छवि वाम ! कामना की किरन का जिसमे मिला हो ओज, कौन हो तुम, इमी भूले हृदय को चिर सोज । कुन्द मदिर सी हंसी ज्यो सुली सुपमा वाट, क्या न वैसे ही खुला यह हृदय रुद्ध कपाट ?" कहा हँसकर "अतिथि हूँ मैं, और परिचय व्यथ, तुम कभी उद्विग्न इतने थे न इसके अथ । चलो, देखो वह चला आता वुलाने आज- सरल हंसमुख विधु जलद लघु खण्ड वाहन साज । कलिमा धुलने लगी घुलने लगा आरोक, इसी निभृत अनत म बसने लगा अब लोक, इस निशामुख की मनोहर सुधामय मुसक्यान, देख कर सब भूल जायें दुख के अनुमान । वासना ॥४९७॥