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"यह नीड मनोहर कृतियो का यह विश्व कर्म रगस्थल है, है परपरा लग रही यहा ठहरा जिसमे जितना बल है। वे क्तिने ऐसे होते है जो केवल साधन वनते हैं, आरम्भ और परिणामो के सबध सून से बुनते है। कपा को सजल गुलाली जो घुलती है नीले अवर मे, वह क्या है ? क्या तुम देख रहे वर्गों के मेघाडबर मे? अतर है दिन औ' रजनी का यह साधक कम विखरता है, माया के नीले अचल में भालो सिंदु सा शरता है।" वाम ॥८८५॥