पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय खंड 1.djvu/५११

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"डरो मत अरे अमृत सतान अग्रसर है मगल मय वृद्धि, पूर्ण आकपण जीवन केन्द्र खिची आवेगी सकल समृद्धि । देव असफलताओ का ध्वस प्रचुर उपकरण जुटा कर आज, पड़ा है वन मानव सपत्ति पूण हो मन' का चेतन राज | चेतना का सुदर इतिहास अखिल मानव भावो का सत्य, विश्व के हृदय-पटल पर दिव्य अक्षरो से अक्ति हो नित्य । विधाता की कल्याणी सृष्टि सफल हो इस भूतल पर पूण, पटें सागर, विखरें ग्रह पुज और ज्वालामुखिया हो चूण । उह चिनगारी सदृश सदप बुचरती रहे खडी सानद, आज से मानवता की कीत्ति अनिल, भू, जल म रहे न बद। १ पाण्डुलिपि मैं-मनु। प्रमाद वाङ्गमय ।।८६८॥