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मधुर माधवी सध्या म जव रागारण रवि होता अस्त, विरल मृदुल दलवाली डालो से उलझा समीर जब व्यस्त, प्यार भरे श्यामल अम्बर म जब कोक्लि को कक अधीर नृत्य शिथिल बिछली पडती है वहन कर रहा है उसे समीर तब क्यो तू अपनी आखो मे जल भरकर उदास होता, और चाहता इतना सूना-कोई भी न पास होता, वञ्चित रे। यह किस अतीत की विकल कल्पना का परिणाम? किसी नयन की नील निशा मे क्या कर चुका क्षणिक विश्राम? क्या झकृत हो जाते है उन स्मति किरणो के टूटे तार ? स्ने नभ मे स्वर तरग का फैलाकर मधु पारावार, नक्षनो से जब प्रकाश की रश्मि खेलने आती है, तब कमलो की सी तव सन्ध्या क्यो उदास हो जाती है? लहर ॥३६९॥