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जिनपर न वनस्पति कोई श्यामल उगने पाती है जो जनपद परस तिरस्कृत अभिशप्त कही जाती हैं। कलियो को उन्मुख देखा सुनते वह क्पट कहानी फिर देखा उड जाते भी मधुकर को कर मनमानी । फिर उन निराश नयनो की जिनके आसू सूखे हैं उस प्रलय दशा को देखा जो चिर वचित भूखे हैं। सूखी सरिता की शय्या वसुधा की करुण कहानी कूलो मे लीन न देखी क्या तुमने मेरी रानी? सूनी कुटिया कोने मे रजनी भर जलते जाना लघु स्नेह भरे दीपक का देखा है फिर वुझ जाना। सत्रका निचोड लेकर तुम सुख से सूखे जीवन में बरसो प्रभात हिमक्न सा आसू इस विश्व-सदन में। प्रसाद वाङ्गमय १३३२॥