विचार अभीष्ट नही किन्तु यह उल्लेख्य है कि ससरण की प्रक्रिया में एर विगत मसृति अथवा सष्टि की भौतिक समाप्ति और उसके ध्वस पर नई ससृति का उद्भव मन्वन्तर-पदवाच्य होता है जिसमें जैव- उमेप, मस्कृति की सम्भावना, समाज-सगठन, सभ्यता का विकास, वैचारिक धरातल की सम्भूति आदि नये आयाम लेते हैं। इस मन्वन्तर सन्ध्या का नामा तर ही प्रलय है जिसकी परिभाषा होगी निमित्त म उपादान का लप। स्थूल उपादान सूक्ष्म निर्मित म, सूक्ष्म उपादान कारण निमित्त म, कारण उपादान महाकारण निमित में एव महाकारण उपादान भी स्वरुप म लोन होते हैं किन्तु मन्वन्तरण में स्थूल उपा- दानो का सूक्ष्म निमित्त म विलय होता है यह भौतिक और सण्डात्मक हाता है इसी लिये मन्वन्तरण क्रम मे हुआ प्रलय खण्ड प्रलय होता है चाहे उसका विस्तार-क्षेत्र छोटा हो अथवा यहा। इसी लिये तो अपनी नाव पर नाण पाते हैं किन्तु श्रद्धा के 'गधर्वो के देश' पर उसका प्रभाव प्राय नही पडता वहां का उद्गीथ अप्रतिहत रहता है । पिलाता कुलि का वरण गुज्य भी प्रत्य-परिचि के कदाचित् बाहर पडता है, किन्तु यह म ण काद है। आकुलि का यह कहना कि 'क्यो किलात पाते खाते तृफिरार यहां तक जो से ध्वनि निकली है कि वे भी प्रलय के मारे हुए हैं और अशरोरो रति-काम की भांति भटक रहे हैं। प्रलय अनेक विध है जिसमे काल प्रलय और शान प्रलय प्रमुख है कामायनी ये आदि मे काल प्रलय हे और अन्त मे ज्ञान य । मुतराम, इसके पूर्व अनेक मन्वन्तर बीत चुके हैं । अर्थात् न जाने कितनी सस्कृतियां और सभ्यतायें शिखर पर जा ऐसे प्रलय पयोधियो म डूब चुकी है जिनकी लौकात्मा के अभिसुप्त मास् के सारभूत-सस्वारभूत एव स्मृति विस्मृति से बुने पट की ओट से धुंधली झलक आती रहती है। किन्तु हम प्रत्ल-गवेषणा के भौतिक स्तर के ही निक्प पर तथ्यो को परख के अभ्यासो हो गय हैं अतएव भौतिक उदादानो, स्रोतो और साधनो से विश्लेपित मीमासाफल मे ही विश्वास रखते है। ध्रुवीय हिमानी अपने भीतर ससृति के पैसे रहस्य छिपाये हमारी भाग्रह-बुद्धि पर हँस रही है अथवा अतलान्त कितनी सस्कृतियो को अपनी लहरो के गोत सुना रहा है कौन जाने ? कामायनी के आमुख मे सकेतित है- 'आदिम युग के मनुष्या के प्रत्येक दल ने ज्ञानो मेप के अरुणोदय में जो भावपूण इतिवृत्त सगृहीत किये थे उहें आज गाथा या पौराणिक उपाख्यान कह कर अलग कर दिया जाता है, आज के मनुष्य के प्राक्कथन ॥४५॥
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