पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय खंड 1.djvu/३७९

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निमम जगती को तेरा उजाला इस जलते हुए हृदय को कल्याणी शीतल ज्वाला। मङ्गलमय मिले जिसके आगे पुलकित हो जीवन है सिसकी भरता हाँ मृत्यु नृत्य करती है मुसक्याती खडी अमरता। मेरे मधुवन वह मेरे प्रेम विहंसते जागो मेरे म फिर मधुर भावनाओ का कलरव हो इस जीवन मे। मेरी आहो मे जागो सुस्मित मे सोने वाले अधरो से हंसते हंसते आँखो से रोने वाले। इस स्वप्नमयी ससृति के सच्चे जीवन तुम जागो मगल किरणो से रजित मेरे सुन्दरतम जागो। अभिलापा के मानस म सरसिज सी आँखें खोलो मधुपो से मधु गुजारो क्लरव से फिर कुछ बोलो। प्रसाद वाङ्गमय ।। ३२६॥