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इस करुणा कलित हृदय मे अब विकल रागिनी बजती क्यो हाहाकार स्वरो मे वेदना असीम गरजती? मानस सागर के तट पर क्यो लोल लहर की घातें क्ल कल ध्वनि से हैं कहती कुछ विस्मृत वीती बातें? माती है शून्य क्षितिज से क्यो लौट प्रतिध्वनि मेरी टकराती बिलखाती सी पगली सो देती फेरी? क्यो व्यथित व्योमगगा सी छिटका कर दोनो छोरें चेतना तरङ्गिनि मेरी लेती है मृदुल हिलोरें? आसू ।। ३०३॥