विन्दु अमा को करिये सुन्दर राका । फैले नव प्रकाश जीवनधन | तव मुग्नचन्द्र विभा का । मेरे अतर मे छिप कर भी प्रकटे मुख सुपमा का। प्रबल प्रभजन मलय-मरत हो, फहरे प्रेम पताका ॥ प्रसाद वाङ्गमय ।।२९८॥