पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय खंड 1.djvu/३५०

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बिन्दु आज इस धन की अंधियारी मे, कौन तमाल झूमता है इस सजी सुमन क्यारी म? हंस कर बिजली सी चमका कर हमको कौन रलाता, बरस रहे हैं ये दोनो हग कैसे हरियाली मे ? झरना ॥२९५॥