पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय खंड 1.djvu/३२५

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स्वप्नलोक स्वप्नलोक मे आज जागरण के समय प्रत्याशा की उत्कण्ठा मे पूण था हृदय हमारा, फूल रहा था कुसुम सा। देर तुम्हारे आने मे थी, इसलिये कलियो की माला विरचित की थी कि, हा जब तक तुम आओगे ये खिल जायेगी। ये सब खिलने लगी, न हमको ज्ञात था। आख खोल देखा तो चन्द्रालोक से रञ्जित कोमल बादल नभ म छा गये, जिस पर पवन सहारे तुम हो आ रहे । हाय क्ली थी एक हृदय के पास ही माला म, वह गडने लगी, न खिल सकी में व्याकुल हो उठा कि तुमको अक मे लेलू, तुमने झोरी फैकी सुमन की मस्त हुई आँखें, सोने को जग पडे सुप्त सकल उद्वेग मधुरतम मोह म॥ - प्रसाद वाङ्गमय ।। २६८॥