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किन्तु न मेरी करो परीक्षा, प्राणधन । होड लगामओ नही, न दो उत्तेजना। चलने दो मलयानिल को शुचि चाल से । हृदय हमारा नहीं हिलाने योग्य है। चन्द्र-किरण-हिम-विन्दु-मधुर-मकरन्द से बनी सुधा, रख दी है हीरक-पान मे। मत छलकाओ इसे, प्रेम परिपूर्ण है। झरना ॥२६७॥