पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय खंड 1.djvu/३०६

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मधुर आंच से गला वहावेगा शैलो से निर्झर लोक, शान्ति सुरसरी की शीतल जल लहरी को देता आलोक । नव यौवन की प्रेम कल्पना और विरह का तीव्र विनोद, स्वण रत्न की तरल काति, शिशु का स्मित या माता की गोद । इसके तल के तम अचल मे इनकी लहरो का लघु भान, मधुर हंसी से अस्त व्यस्त हो, हो जायेगी, फिर अवसान ॥ - झरना ॥२४१