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गज समान है नस्त, ग्रस्त द्रौपदी सदृश है ध्रुव सा धिक्कृत और सुदामा सा वह कृश है बंधा हुमा प्रह्लाद सदृश, कुत्सित कर्मों से अपमानित गौतमी न थी इतनी मर्मों से धम बिलखता सोचता हम क्या से क्या हो गये थक कर कुछ अवतार से तुम सुख निधि मे सो गये। कानन कुमुम ।।२०७