पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय खंड 1.djvu/२४५

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निशीथ-नदी विमल व्योम म तारा-पुञ्ज प्रक्ट हो करके नीरव अभिनय कहो कर रहे है ये कैमा प्रेमी के हगतारा से ये निनिमेष हैं देख रहे से स्प अलौकिर सुन्दर किसका दिशा, घरा, तरु राजि सभी ये चिन्तित से है शान्त पवन स्वर्गीय स्पश से सुख देता है दुखी हृदय म प्रिय प्रतीति की विमल विभा सी तारा-ज्योति मिली है तम मे, कुछ प्रकाश है कूल युगल म देखो कैसी यह सरिता है चारो ओर दृश्य सब कैसे हरे भरे हैं बालू भी इस स्नेहपूण जल के प्रभाव से उवर हैं हो रहे, करारे नही काटते पक्लि करते नही स्वच्छशीला सरिता को तरगण अपनी शाखाओ से इङ्गित करके उसे दिखाते और माग, वह ध्यान न देकर चली जा रही है अपनी ही सीधी धुन में प्रसाद वाङ्गमय ॥१८४ ॥