पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय खंड 1.djvu/२३२

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मलिना नव-नील पयोधर नभ में काले छाये भर भर कर शीतल जल मतवाले धाये लहराती ललिता लता सुवाल सजीली लहि सग तरुन के सुन्दर बनी सजीली फूलो से दोनो भरी डालिया हिलती दोनो पर बैठी खग की जोडी मिलती वुलवुल कोयल हैं मिलकर शोर मचाते बरसाती नाले उछल उछल बल खाते वह हरी लताओ को सुन्दर अमराई बन बैठी है सुकुमारी सी छविछाई हर ओर अनूठा दृश्य दिखाई देता सब मोती ही से बना दिखाई देता वह सघन कुज सुख-पुञ्ज भ्रमर की आली कुछ और दृश्य है सुपमा नई निराली बैठी है वसन मलीन पहिन इक वाला पुरइनपत्रो के बीच कमल की माला कानन कुसुम ॥१७१॥