पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय खंड 1.djvu/२१०

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वन्दना जयनि प्रेम निधि । जिमी करणा नौका पार लगाती है जयति महामगीत । विश्व-वीणा जिमरी ध्वनि गाती है यादम्बिनी कृपा की जिसरी सुधान्नीर बरसाती है भव-याना वो धरा हरित हा जिससे शोभा पाती है निर्विकार लीलामय । तेरी शक्नि न जानी जाती है जातप्रोत हो तो भी ससी याणी गुण-गण गाती है गद्गद्-हृदयनि सृता यह भी वाणो दौडी जाती है प्रभु । तेरे चरणा में पुस्ति होरर प्रणति जताती है पाउन मुम ॥१४७॥ R