प्रभू प्रेम मय प्रकाश तुम हो प्रकृति पद्मिनी के अशूमालु असीम उपवन के तुम हो माली धरा बराबर जयवंत यह है जो तेरी होवे दया दयानिदी तो पूत होता सकल मनोरथ सभी ये कहते पुकार करके यही तो आशादिला रही है • प्रसाद वाङ्मय ।।१४६।।