पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय खंड 1.djvu/१०९

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चन्द्र निसि फलि रही निसिनाथ-धला । किरणावलि कान्ति लसे अमला ॥ बिलसै चहुँ ओर लखात भला । निधि छीर मनो बिहरै कमला ।। अमला किरणावलि पूर समी। सुरनारि कपोल-कला हुलसी ।। बिलस रतनाकर, अम्वर म- रतनेस न जासु काऊ बर म ।। कमला जल केलिहि हेतु रम । उडुराज किधी नलिनीगन म॥ शुचि व्योम-सरोवर के जल मे । शशि कै मुख-पज विकासन म । सुमहोत्पल है कि मयक क्ला। यह बारिधि कै शुचि व्योम झला ।। यह चारु पराग मरन्द सनो। बरसैपि जुन्हाइहिं चन्द मनो। प्रसाद वाङ्गमय ॥४४॥