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यमलोक का जीवन

जिस दिन सरबस नामक ज्वालामुखी पर्वत हम लोगों को पहले पहल दिखलाई दिया, वह दिन हमें बखूबी याद है। इस पर्वत का पता, ६० वर्ष हुए सर जेम्स रास ने लगाया था। यह पर्वत १२,५०० फुट ऊँचा है। जब हम लोग उसके पास पहुँचे, हमने देखा कि उसके मुंँह से धुवें की धारा भक भक निकल रही है। जहाँ चारों ओर बर्फ के ऊँचे ऊँचे टीले खड़े हुए हैं, जहाँ समुद्र ही बर्फ मय हो गया है, वहाँ इस ज्वालागर्भ पर्वत को देख कर बड़ा विस्मय होता है। जहाँ प्रचण्ड शीत वहाँ अग्नि वमन करने वाला पर्वत! परन्तु प्रकृति बड़ी विचित्र है। वह अपनी विचित्रता के ऐसे ही ऐसे विलक्षण उदाहरण कभी कभी दिखलाती है। इस पहाड़ के नीचे ही, कुछ दूर पर, हम लोगों ने शीत ऋतु बिताने के लिए, रहने का स्थान बनाना चाहा। हमको आशा थी कि यहाँ रहने से हम लोगों को कुछ गरमी मिलेगी; परन्तु हमारा यह ख़याल बिलकुल ही गलत निकला।

पहले तो हम लोगों को बहुत गरम कपड़े नहीं पहनने पड़े; परन्तु कुछ काल में थर्मामीटर का पारा शून्य (०) के नीचे चला गया। तब हम लोगों ने निहायत गरम कपड़े निकाले। मोटे चमड़े के बूट भी सर्द मालूम होने लगे। इस कारण से सम्बूर के बूट पहनने की जरूरत पड़ी।