पहुंँचते हैं सब भी वे बनी जगह से नहीं हटतीं, परन्तु पेनगुइन का मिजाज इसका सीधा नहीं। वे आदमी को देख कर उस पर हमला करने के लिए दौड़ती हैं। इन चिड़ियों के घोंसले बहुत छोटे और भद्दे होते हैं। जब ये चिड़ियाँ अपने बच्चों को खिलाती है तब उनको देख कर बड़ा आनन्द माता है। बच्चों के माँ-बाप पास वाली समुद्र की उथली खाड़ियों की ओर उड़ जाते हैं। वहाँ ये मछलियों वगैरह का शिकार करके अपने मुंँह में रख लेते हैं। जब मुंँह भर जाता है तब वे अपने घोंसलों को उड़ आते हैं। वहाँ आते ही उनके बच्चे उनके मुंँह में अपनी चोंच डाल कर बड़े प्यार और बड़े प्रेम से उन लज़ीज़ चीजों को खाते हैं।
जिस समय का जिक्र है, वह ग्रीष्मऋतु थी। ग्रीष्म क्या उसे वसन्त ही कहना चाहिए। किसी किसी दिन आकाश निरभ्र और सूर्य चमकीला नज़र आता था। जब सूर्य की किरणें बर्फ के ऊँचे ऊँचे टीलों पर पड़ती थीं तब बड़ा कौतुक मालूम होता था। उनको देख कर तबियत बहुत खुश होती थी। जान पड़ता था कि तपाये हुए सुर्ख सोने के तार सूर्य मण्डल से उन राशि-राशि मय बर्फ के शिखरों तक फैले हुए। यह ऋतु सिर्फ छः हफ्ते रहती है। १६ दिसम्बर से ३१ जनवरी तक ही यह शोभा देखने को मिलती है।