है। उत्तरी ध्रुव के जिस अंश में जितना शीत है, दक्षिणी ध्रुव के उसी अंश में उस शीत की अपेक्षा बहुत अधिक है। पृथ्वी का वह भाग जो दक्षिणी ध्रुव के आस पास है इतना शोभाशाली है कि एक वार वहाँ जाकर फिर लौटने को जी नहीं चाहता। वहाँ के शीत की, वहाँ की तकलीफों की और वहाँ की निर्जनता की कुछ परवा न कर के पुनर्वार वहाँ जाने की इच्छा होती है। उस की प्राकृतिक शोभा कभी नहीं भूलती। वह वहाँ बलात् ले जाने के लिए चित को उत्कठित किया करती है।
चलते चलते एक दिन सहसा हम लोगों को कुछ सफेदी नजर आई। वह सफेदी बर्फ के छोटे छोटे टुकड़ों की चादर थी। हमारा जहाज़ (डिस्कवरी) धीरे धीरे उस बर्फ को फाड़ता हुआ आगे बढ़ने लगा। कुछ देर बाद हमारे दाहिने बाँये और आगे पीछे समुद्र शुभ्र रजतमय हो गया। बर्फ की सफेद लाइन, जिस तरफ नज़र उठाइए उसी तरफ देख पड़ने लगी। उस बर्फ के ऊपर सील नामक मछलियां और पेनगुइन नामक चिड़ियां आनन्द से खेल रही थीं। सीलों ने तो हमारी कुछ परवा न की। उन्होंने हमारी तरफ नज़र तक नहीं उठाया। परन्तु पेनगुइन चिड़ियाँ एक विलक्षण प्रकार की आवाज़ करते हुए हमारी तरफ दौड़ी। हमारे जहाज़ को देख कर उन्हें