पृष्ठ:प्रबन्ध पुष्पाञ्जलि.djvu/७१

यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
६१
बलरामपुर का खेदा

उन्हें चारा पानी दिया जाता है। कोई छः महीने में वे सध जाते हैं और बोझ ढोने या सवारी का काम देने लगते हैं। लङ्का में हाथियों को सागोन के लट्ठे बहुत ढोने पड़ते हैं।

सुनते हैं, पालतू हाथियों के ऊपर जो आदमी सवार रहता है उस पर जङ्गली हाथी वार नहीं करते।