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बलरामपुर का खेदा

छोटे छोटे बच्चे तक पराधीनता नहीं पसन्द करते; पकड़ते समय वे बेतरह बिगड़ते हैं, पर कैद हो जाने पर अपने स्वातन्त्र्य प्रेम को वे जल्द भूल जाते हैं।

जङ्गली हाथियों के पकड़ने की कई तरकीबें हैं। इस देश में भी कई तरह से हाथी पकड़े जाते हैं। पर जो तरकीब बलरामपुर में काम में लाई जाती है, वही अकसर मदरास और आसाम में भी काम में लाई जाती है।

लङ्का में बहुत हाथी होते हैं। वहाँ के हाथियों के दाँत अकसर नहीं होते। जङ्गली हाथियों को पकड़ने के लिए गवर्नमेंट का हुक्म दरकार होता है और कुछ कर भी देना पड़ता है। गरमी के मौसम में, बड़े बड़े गाँवों के जमींदार कोई दो हजार आदमी इकट्ठा करते हैं, वे हाथियों के झुण्ड को घेरते हैं। पानी कम हो जाने के कारण गरमी के दिनों में हाथी अकसर किसी तालाब या नदी ही के पास रहते हैं ओर दस बीस मिल कर एक साथ घूमते फिरते हैं। जहाँ हाथी होते हैं वहाँ से कुछ दूर पर मज़बूत लकड़ियों का एक वृत्ताकार घेरा या बाड़ा बनाया जाता है। जिस तरफ से उस में हाथियों के घुसने की उम्मेद होती है, उस तरफ घेरे का मुंँह खुला रक्खा जाता है।

कई दिनों तक खेदे वाले हाथियों को घेरते हैं और धीरे धीरे लकड़ियों के घेरे की तरफ ले आते हैं। घेरा