से थामे रहते हैं। उस के दाहिने बांये भी कई हाथी चलते हैं। इस तरह वह नया कैदी जङ्गल से पड़ाव को लाया जाता है। अगर पड़ाव दूर होता है तो रात को बीच में कहीं ठहरना पड़ता है। पड़ाव पर पहुँचने पर वह एक बड़े पेड़ से बाँध दिया जाता है और चारा उस सूड़ की पहुँच में रख दिया जाता है। अपनी स्वतन्त्रता के छिन जाने पर कभी कभी हाथी को रंज होता है। कई दिन तक वह एक तिनका भी मुँह में नहीं डालता। जिन आदमियों की स्वतन्त्रता छिन जाती है क्या उन को भी कभी इस बात पर अफसोस या रंज होता है? कोई कोई हाथी बहुत समझदार होता है। वह समझ जाता है कि छूटने की कोशिश करने या खाने को न खाने से अब काई लाभ नहीं। इस से दैववश प्राप्त हुई पराधीनता के सामने सिर झुका कर वह पहले ही दिन से खाना पीना शुरू कर देता है। लटूशबहादुर नाम का हाथी इसी पिछली नीति के स्कूल का था। जब उसे पहली दफे पानी पिलाने के लिए शिकारी हाथी रस्से थाँमे हुए पानी के पास ले गये तब उसने सिर तक नहीं हिलाया। अपनी दशा पर सन्तोष कर के चुप चाप उसने पानी पी लिया। पर चण्डीप्रसाद किसी दूसरे स्कूल का हाथी था। उसे इस तरह की नम्र नीति पसन्द नहीं आई। खाने पीने
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बलरामपुर का खेदा