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बलरामपुर का खेदा

उस के पीछे दौड़ी। जङ्गली हाथी भागा। कभी वह नरकुल के जङ्गल में घुस जाता, कभी उस से भी घने पेड़ों और काँटेदार झाड़ियों के जङ्गल में। इस तरह बहुत देर तक वह इधर उधर भागता और शिकारी हाथियों को तङ्ग करता रहा। करीब ५ बजे शाम को वह सब तरफ से निकाला जा कर मैदान में बाहर आया। वहाँ मोका पाते ही दो तीन शिकारी हाथी उस के पास पहुँचे और उस पर उन्होंने फन्दे डाल दिये। फन्दे फेंके गये। तीनों सही हो गये। पर हाथी बहुत बिगड़ा हुआ था। फन्दों के रस्सों को जो दो हाथी पकड़े हुए थे उन को घसीटता हुआ वह जङ्गल की तरफ भागा। इतने में और भी कई शिकारी हाथी उस के पास पहुँच गये और वह खूब घेर लिया गया। कई बड़े बड़े हाथी उस के इधर उधर खड़े हुए। तब उस के पैरों में रस्सा डाला गया और गर्दन में और कई फन्दे लगाये गये। इस तरह वह खूब मजबूती के साथ गिरफ्तार कर लिया गया। तब वह पड़ाव की तरफ रवाना किया गया। चार शिकारी हाथी उस के आगे जोड़े गये और तीन पीछे एक दाहिने और एक दांये; ऐसे दो हाथी और उसके साथ हुए। रास्ते में एक आध जगह पानी पिला कर वह पड़ाव पर पहुँचाया गया। उस का नाम रक्खा गया "चण्डीप्रसाद ।" उस में चण्ड भाव था भी