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प्रबन्ध-पुष्पाञ्जलि

मौके पर पहुँच गये थे। इस से उनकी अनुमति से इस हाथी का नाम "लाटूश बहादुर" रक्खा गया। इस खेदे के पहले जो खेदा हुआ था उस में एक हाथी का नाम "मैकडानल बहादुर" रक्खा गया था। क्योंकि उस खेदे में सर अण्टोनी मैकडानल शरीक थे।

३० दिसम्बर को फिर खेदे को तयारियाँ हुई। शिकारी हाथी ओर बन्दूकची लोग सबेरे ही जङ्गल की तरफ रवाना हुए। कोई १० बजे खबर आई कि जङ्गली हाथियों का पता लगा है। इसलिए लाट साहब और महाराजा घोड़ों पर सवार हो कर डेढ़ बजे के करीब मौके पर पहुँचे। कुछ देर बाद खेदा करने के लिए बन्दूक वाले जङ्गल में फँसे। उन के पीछे शिकारी हाथी और शिकारा हाथियों के पीछे सवारी के हाथी चले। बीच में एक नाला पड़ा। खेदे के कप्तान नन्हें खाँ ने सब लोगों को नाले के उस पार, जङ्गल में खड़ा किया। फन्देंती हाथी अपनी अपनी जगह पर खड़े हुए। गनराज-बहादुर और नागेन्द्रगज महाराजा और लाट साहब के पास रक्षक के तौर पर रहे। तब तक बन्दूक वालों ने सेवा कर के जङ्गली हाथियों को जङ्गल से बाहर निकाला। बन्दूक की आवाज़ सुनाई पड़ने के कोई आध घन्टे बाद एक जङ्गली हाथी दिखाई दिया। उस पर नागेन्द्रगज ने धावा किया। महाराजा की हथिनी भगवतप्यारी भी