उसका फल सन्तोष जनक नहीं हुआ। किन्तु १८५१ से इधर यह काम बहुत उत्तम रीति से होता है। १८५१ में मनुष्यों के धर्म और शिक्षा के सम्बन्ध में भी जाँच की गई थी उसके बाद से प्रति मनुष्य गणना की रिपोर्ट में नये उपयोगी विषयों का उल्लेख किया जाता है।
भारतवर्ष के प्राचीन समय की मनुष्य गणना का विशेष वृत्तान्त ज्ञात नहीं। ब्रिटिश शासन के समय की मनुष्य-गणना का सिलसिला कोई पचास वर्ष से चला आता है। पहली मनुष्य-गणना १८६७ और १८७२ ईसवी के बीच में हुई थी। किन्तु उस समय हैदराबाद, काश्मीर, मध्यभारत, राजपूताना तथा पंजाब प्रान्त के देशी राज्यों की गणना नहीं हुई। अन्यान्य प्रान्तों की गणना भी एक ही समय नहीं हुई। इस कारण उस में अनेक प्रकार की त्रुटियाँ रह गई। तो भी उससे बहुत लाभ हुआ। १८८६ ईस्वी की १७ फरवरी को फिर मनुष्य-गणना हुई। इस दफे सब कहीं एक ही समय मनुष्यों की गिनती हुई और इसमें काश्मीर तथा सुदूरवर्ती कुछ छोटे छोटे राज्यों के सिवा बाकी सारे देशी राज्य सम्मिलित किये गये। मनुष्य-गणना के नियम प्रायः सर्वत्र एक ही से रक्खे गये। केवल कई जङ्गली और मरुपदेशों में कुछ नियमों में हेर फेर हुआ। यही गणना सरकारी रिपोर्ट में पहली मनुष्य-गणना कही गई है।