पृष्ठ:प्रबन्ध पुष्पाञ्जलि.djvu/४६

यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
भारतवर्ष की चौथी मनुष्य-गणना।

मनुष्य गणना की प्रथा बहुत पुरानी है। सञ्चालन और प्रजा-हित साधन, दोनों में, इससे बहुत सहायता मिलती है। इसी से सभ्य और समुन्नत देशों के इतिहास में मनुष्य गणना की प्रथा का उल्लेख पाया जाता है। सभ्यता के सूर्य की दिव्य ज्योति का विकाश सबसे पहले हमारे भारतवर्ष की भूमि पर ही हुआ था। अतएव यह सर्वथा सम्भव है कि यहाँ भी प्राचीन समय में मनुष्य गणना की प्रथा सर्वत्र प्रचिलित रही हो। चन्द्रगुप्त के समय में तो यहाँ अवश्य ही मनुष्य-गणना होती थी। चाणक्य ने अपने अर्थशास्त्र में इसका उल्लेख किया है। परन्तु हमारे यहाँ श्रृङ्खलाबद्ध इतिहास का सर्वथा अभाव है। इसी से यह नहीं मालूम होता कि प्राचीन समय में किस तरह मनुष्य-गणना होती थी और उस के द्वारा कौन कौन कार्य सम्पन्न होते थे।