के पालने-पोसने और उनको शिक्षा देने का काम निकल सकता है। इससे अधिक हम और कुछ नहीं कहते। इन शास्त्रों की इतनी शिक्षा बहुत थोड़े दिनों में दी जा सकती है। इस तरह की शिक्षा का कार्य-कारण-भाव यदि तर्कना द्वारा बुद्धिस्थ न कर दिया जा सके, यदि दलीलों से उसकी योग्यता न समझाई जा सके तो न सही, विधि-निषेध भाव से ही यह शिक्षा दी जाय। इस बात को करना अच्छा है, इस बात को करना बुरा; इतना ही समझा देना काफ़ी होगा। कुछ भी हो, जो बातें हम नीचे लिखते हैं; उनके विषय में मतभेद नहीं हो सकता। उनके खिलाफ कोई कुछ नहीं कह सकता । वे बात ये हैं---
(१)बच्चों के शरीर और मन की तरक्की कुछ विशेष प्रकार के नियमों के अनुसार होती है।
(२)यदि माँ-बाप इन नियमों की जरा भी परवा न करेंगे; यदि इन का विलयुल ही पालन न करेंगे, तो बच्चे कभी जीते न रहेंगे।
(३)यदि माँ बाप इन नियमों की थोड़ी ही परवा करेंगे, यदि इनके पालन में थोड़ा ही ध्यान देंगे, तो बच्चों के शरीर और मन में बहुत से पैदा हुए दोष भी न रहेंगे।
(४)यदि माँ-बाप इन नियमों की पूरी पूरी परवा करेंगे, यदि इनको पूर्ण रीति से पालेंगे तभी बच्चों के