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प्रबन्ध-पुष्पाञ्जलि

है। अङ्गूर और शहतूत के बाग दूर दूर तक चले गये हैं। तरु, लता, पशु, पक्षी और मनुष्यों से परिपूर्ण, ऐसी मनोहर भूमि के बीच, यह भीम भूधर खड़ा है। समुद्र की सतह से यह कोई ४,००० फुट ऊँचा है।

जिस मुँह से विस्यूवियस ज्वलन्त ईंट, पत्थर, राख भाफ और धातु-रस उगलता है उसकी परिधि ५ मील है। यह अनादि अग्नि गर्भ पर्वत है। किसी समय यह एक दूसरे ही मुख से ज्वाला वमन करता था। इस प्राचीन मुख का घेरा नये मुँह से भी बड़ा है। परन्तु उस मुँह ने चिरकाल से मौन धारण कर लिया है। विस्यूवियस की इस समय, जितनी ऊँचाई है, प्राचीन समय में वह उससे दूनी थी। परन्तु एक महा वेगवान् स्फोट में उस के सब से ऊँचे शिखर उड़ गये। तब से उसे यह वामन रूप मिला है।

विस्यूवियस कई सौ वर्ष तक शान्त था। जान पड़ता था कि उस की जठराग्नि मन्द हो गई और वह हमेशा के लिए शिथिल पड़ गया। इसलिए मनुष्यों ने उसके इर्द गिर्द अनेक बाग लगा दिये, अनेक नगर और गाँव बसा दिये; यहाँ तक कि पर्वत के ऊपर उस के ज्वाला वाहक मुँह तक वे अपनी भेड़ बकरियाँ चराने के लिए ले जाने लगे। उस के शिखर नाना प्रकार के हरे हरे पेड़ों और लताओं से ढक गये। उन को देख कर यह बात कभी मन में न आती थी कि वह अग्नि गर्भ पर्वत है।