के अन्त में कुछ साथियों समेत कप्तान स्काट ने दक्षिण की यात्रा की तैयारी के लिए खाने-पीने का सामान इकट्ठा करना प्रारम्भ किया।
इस स्थान पर कोई नो महीने ठहरने के बाद ये लोग २ नवम्बर १९११ ईसवी को दक्षिण की ओर रवाना हुए। रास्ते में बर्फ के टीलों, गड़ों और ऊँचे नीचे दुर्गम स्थानों को पार करते हुए, साथियों समेत, कप्तान पन्द्रह मील प्रति दिन की चार से आगे बढ़ने लगे। मार्ग में बर्फ के ख़ास तरह के तूदे बनाते जाते थे, ताकि लौटते वक्त राह न भूल जायें। ४ जनवरी सन् १९१२ को यह दल ८७ डिग्री ३६ मिनट दक्षिणी अक्षांश पर पहुँचा। वहाँ से दक्षिणी ध्रुव केवल डेढ़ सौ मील के फासले पर था और उन लोगों के पास तीस दिन के लिए खाने का सामान था। कहते हैं कि इस जगह से स्काट साहब ने अपने कुछ साथियों का लौटा दिया और कहा कि तुम लोग जा कर जहाज़ का प्रबन्ध करो। ये लोग रास्ते में ध्रुवीय प्रदेश के जीव-जन्तुओं तथा जल वायु की परीक्षा करने और कितने ही आविष्कार करते हुए अपने ठहरने के स्थान पर लौट आये। कप्तान स्काट अपने चार साथियों के साथ आगे बढे और शायद ध्रुव तक पहुँच गये। लौटते वक्त रास्ते में फंचों वीर-पुङ्गवों का प्राणान्त हो गया। अभी तक यह पता नहीं लगा कि किन कारणों से उनकी मृत्यु हुई।