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प्रबन्ध-पुष्पाञ्जलि

(६) विक्टोरियालैंड नामक टापू के पश्चिमी ओर के ऊँचे ऊँचे पर्वतों का ज्ञान प्राप्त किया।

(७) कोयले की खानों के निशान पाये।

(८) दक्षिणी ध्रुव के चारों ओर का वायुमण्डल शान्त है, इस कल्पित मत की असारता प्रत्यक्ष अनुभव की।

५ मार्च सन १९०८ को शैकलटन साहब ने एरीबस पहाड़ पर चढ़ना प्रारम्भ किया। साथ में सात आदमी और थे। सब लोग अपना अपना असवाब अपनी पीठ पर लादे हुए थे। ७ मार्च की रात को वे लोग ९५०० फुट की ऊँचाई पर पहुँचे। वहाँ पर इतनी सख्त सर्दी पड़ रही थी कि थर्मामीटर का पारा शून्य से पचास डिग्री नीचे पहुँच गया था। इसी समय एक बड़ा भयङ्कर तूफान आया वह कोई तीस घण्टे तक बराबर बना रहा। इसलिए दूसरे दिन वे लोग वहीं रहे। ९ मार्च को उन्होंने फिर चढ़ना प्रारम्भ किया। ११,००० फुट की उँचाई पर पहुँचने के बाद उन्हें इस ज्वालामुखी पर्वत का एक दहाना देख पड़ा जिसमें से आग की लपटें सदा निकला करती हैं। पर खूबी यह कि उसमें धुआँ का नामोनिशान तक न था। जब वे लोग चोटी पर पहुँचे तब उन्होंने देखा कि वहाँ पूर्वोक्त दहाने की अपेक्षा एक बहुत बड़ा दहाना मौजूद है। उसका घेरा आध मील से अधिक होगा। गहराई अस्सी फुट के क़रीब मालूम