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प्रबन्ध-पुष्पाञ्जलि

शैकलटन साहब अपने साथियों समेत २९ अक्टूबर १९०७ को दक्षिणी ध्रुव की यात्रा के लिए न्यूज़ीलैंड से रवाना हुए थे। वे अपने साथ हुनों की जगह मन्चूरिया के टट्टू और मोटर ले गये थे। बालू खा जाने के कारण यद्दपि कुछ टटू मर गये और कुछ मार डाले गये तथापि कुतों की अपेक्षा वे अधिक लाभदायक सिद्ध हुए। शैकलटन साहब कोई चौदह महीने तक इधर उधर घूमते और तरह तरह की चीज़ खोजते रहे। अन्त में वे एक ऐसे स्थान पर पहुँचे जहाँ से ठेठ दक्षिणी ध्रुव १११ मील था। ध्रुव के इतने निकट अब तक कोई न पहुँचा था। आपही पहले मनुष्य हैं जो वहाँ तक पहुँचे। आपके पहले, १९०२ में, जो मनुष्य दक्षिणी ध्रुव की ओर सबसे अधिक दूर तक गया था वह कप्तान स्काट था। परन्तु वह जिस स्थान तक पहुँचा था वह ठेट दक्षिणी ध्रुव से ४६१ मील की दूरी पर था। इससे आप समझ सकते हैं कि शैकलटन साहब कप्तान स्काट से कोई ३५० मील आगे तक पहुँच गये। वहाँ पहुँच कर आपने अंगरेज़ों का जातीय झण्डा (Union Jack ) फहराया। यह चिरस्मणीय घटना २ जनवरी १९०९ ईसवी की है। आगे ऐसा दुर्गम मार्ग था कि ओर दूर बढ़ना आपने असम्भव समझा। इसलिए वहाँ से आप लौट पड़े ओर न्यूजीलैंड होते हुए इंग्लैंड को रवाना हुए।