"रह कर भी बराबर चले गये। दिसम्बर में भी यही हालत रही। अन्त को ३१ दिसम्बर के दिन हम लोग अपने सफर की अन्तिम सीमा पर पहुंँचे; वहाँ से आगे हम न बढ़ सके। यहीं हमने अँगरेजी झण्डा खड़ा कर दिया।
खाने का सामान बहुत कम रह गया था। कुत्ते प्रायः सभी मर चुके थे। अतएव हम लोगों ने वापस जाने का विचार किया। वहाँ से हमारा जहाज ३०० मील दूर था। सब लोग निहायत कमजोर हो गये थे। खैर किसी तरह हम लोग पीछे लौटे। हममें से किसी किसी को बर्फ ने कुछ काम के लिए अन्धा तक कर दिया। कलेजे को कड़ा करके जहाज की तरफ पैर फेरा। धीरे धीरे सब कुत्ते मर गये; सिर्फ दो बचे। अतएव हम लोगों को खुद गा- ड़ियाँ खींचना पड़ी। कभी कभी तीन तीन मन तक वजन गाड़ियों में भर कर हमने खींचा। मोह, उस मुसीबत का स्मरण आते ही ददन काँपने लगता है। वर्णनातीत दुःख सह कर ३ फरवरी १९०४ को हम लोग अपने जहाज पर वापस आये। वहाँ हमने देखा कि हमारी मदद के लिए एक दूसरा जहाज आ गया है। उसमें हम लोगों की स्वानगी चिट्ठियाँ और भावदार वगैरह मिले। तब हमने जाना कि बोर युद्ध की समाप्ति हो गई और हमारे बादशाह सातवें एडवर्ड की राजगद्दी का जलसा भी हो चुका।