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प्रबन्ध-पुष्पाञ्जलि

किसी दिन हम लोग १५ मील जाते थे। इस सफर में हमारे बहुत से कुते मर गये। इसलिये हम लोगों को स्वयं गाड़ियाँ खींचनी पड़ी। जब हम लोगों ने देखा कि हमारे कुते मर रहे हैं तब हमने अपने खाने पीने का बहुत सा सामान एक जगह रख कर गाड़ियां हलकी कर ली। तेल भी कम कर दिया गया। इसलिए एक ही दो बार चूल्हा जलने लगा। इसका फल यह हुआ कि हम लोगों को गरम खाना कम नसीब होने लगा। जरा सी शक्कर, सील के मांस का एक छोटा सा सूखा टुकड़ा ओर डेढ़ विस्कुट पर हम लोग बसर करने लगे। ये चीज़े हम रास्ते में चलते चलते खाते थे; कुता की बुरी हालत थी। जब हम लोग खाते थे तब वे हमारे मुंँह की तरफ देखा करते थे। अगर, कोई टुकड़ा नाचे गिरे तो वे उसे उठा ले मगर यह उदारता दिखलाना हम लोगों के लिए स्वयं अपना मृत्यु को बुलाना था। जब शाम को हम लोग कहीं ठहरते तब हम एक कुत्ते को प्रायः गोली मार देते। उसी के मांस से दूसरे कुतों का गुजर हाता। प्रतिदिन हमारा खूराक कम होने लगी; भूख से हम लोग विफल होने लगे; यहाँ तक कि विस्कुट ओर हलुवा हम लोगों को स्वप्न में भी देख पड़ने लगा। दिन रात खाने ही का चीजों का ध्यान रहता था। एक प्रकार की निराशा ने सबके चेहरों का रङ्ग फीका कर दिया। नवम्बर भर हम लोग इसी तरह सख्त मुसीबतों में मुब्तिला