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प्रतिज्ञा

और कुछ न सही, तो आदमी सीधे मुँह बात तो करे। जब से तुम आई हो, मिजाज़ और भी आसमान पर चढ़ गया है।

पूर्णा को सुमित्रा को कठोरता बुरी मालूम हो रही थी। एकान्त में कमलाप्रसाद सुमित्रा को जलाते हों; पर इस समय तो सुमित्रा ही उन्हें जला रही थी। उसे भय हुआ कि कहीं कमला मुझसे नराज़ हो गये, तो मुझे इस घर से निकलना पड़ेगा। कमला को अप्रसन्न करके यहाँ एक दिन भी निर्वाह नहीं हो सकता, यह वह जानती थी। इसीलिए वह सुमित्रा को समझाती रहती थी। बोली--मैं तो बराबर समझाया करती हूँ, बाबू जी। पूछ लीजिये झूठ कहती हूँ।

सुमित्रा ने तीव्र स्वर में कहा--इनके आने से मेरा मिजाज़ क्यो आसमान पर चढ़ गया, ज़रा यह भी बता दो। मुझे तो इन्होंने राज-सिंहासन पर नहीं बैठा दिया। हाँ, तब अकेली पड़ी रहती थी, अब घड़ी-दो-घड़ी इनके साथ बैठ लेती हूँ; क्या तुमसे इतना भी नहीं देखा जाता?

कमला--तुम व्यर्थ बात बढ़ाती हो सुमित्रा! मैं यह कब कहता हूँ कि तुम इनके साथ बैठना-उठना छोड़ दो, मैंने तो ऐसी कोई बात नहीं कही।

सुमित्रा--और यह कहने का आशय ही क्या है कि जब से यह आई हैं, तुम्हारा मिजाज़ आसमान पर चढ़ गया है।

कमला--कुछ झूठ कह रहा हूँ? पूर्णा खुद देख रही हैं। तुम्हें उनके सत्सङ्ग से कुछ शिक्षा ग्रहण करना चाहिये था। इन्हें यहाँ लाने का मेरा एक उद्देश्य यह भी था। मगर तुम्हारे ऊपर इनकी सोहबत का उलटा ही असर हुआ। यह बेचारी समझाती होगी, मगर तुम क्यो

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