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प्रतिज्ञा

उसे बरने में उसे कोई आपत्ति न होगी। इतना वह जानती है कि गृहस्थ की कन्या क्वारी नहीं रह सकती।

बदरी॰--रो-रोकर प्राण तो न दे देगीद?

देवकी--नहीं, मैं ऐसा नहीं समझती। कर्त्तव्य का उसे बड़ा ध्यान रहता है। और यों तो फिर दुःख है ही, जिसे मन में अपना पति समझ चुकी थी, उसको हृदय से निकालकर फेंक देना क्या कोई आसान काम है? यह घाव कहीं बरसों में जाके भरेगा।। इस साल तो वह विवाह करने पर किसी तरह न राज़ी होगी।

बदरी॰--अच्छा, मैं ही एक बार उससे पूछूँगा। इन पढ़ी-लिखी लड़कियों का स्वभाव कुछ और हो जाता है। अगर उनके प्रेम और कर्तव्य में विरोध हो गया, तो उनका समस्त जीवन दुखमय हो जाता है। वे प्रेम और कर्तव्य पर उत्सर्ग करना नहीं जानती, या नहीं चाहतीं। हाँ, प्रेम और कर्तव्य में संयोग हो जाय, तो उनका जीवन आदर्श हो जाता है। ऐसा ही स्वभाव प्रेमा का भी जान पड़ता है। मैं दानू को लिखे देता हूँ कि मुझे कोई आपत्ति नहीं है; लेकिन प्रेमा से पूछकर ही निश्चय कर सकूँगा।

सहसा कमलाप्रसाद आकर बोले--आपने कुछ सुना? बाबू अमृतराय एक वनिता-आश्रम खोलने जा रहे हैं। कमाने का यह नया ढङ्ग निकाला है।

बदरीप्रसाद ने ज़रा माथा सिकोड़कर पूछा--कमाने का ढङ्ग कैसा, मैं नहीं समझा?

कमला---वही जो और लीडर करते हैं। वनिता-आश्रम में विध

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