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प्रतिज्ञा

तुम्हारे भाग जागे, माता-पिता ने तुम्हारे पल्ले बाँध दिया, तो मैंने क्या किया, दो-एक दिन तो अवश्य दुख हुआ, मगर फिर उनकी तरफ़ ध्यान भी न गया। तुम शक्ल सूरत, विद्या-बुद्धि, धन-दौलत किसी बात में उनकी बराबरी नहीं कर सकते; लेकिन क़सम लो जो मैंने विवाह के बाद कभी भूलकर भी उनकी याद की हो।

बदरी॰--अच्छा, तभी तुम बार-बार मैके जाया करती थीं! अब समझा।

देवकी--मुझे छेड़ोगे तो कुछ कह बैठूँगी!

बदरी॰--तुमने अपनी बात कह डाली, तो मैं भी कहे डालता हूँ। मेरा भी एक मुसलमान लड़की से प्रेम हो गया। मुसलमान होने को तैयार था। रङ्ग-रूप में अप्सरा थी, तुम उसके पैरों की धूल को भी नहीं पहुँच सकतीं। मुझे अब तक उसकी याद सताया करती है।

देवकी--झूठे कहीं के, लबाड़िये। जब मैं आई, तो महीने-भर तक तो तुम मुझसे बोलते लजाते थे, मुसलमान औरत से प्रेम करते थे। वह तो तुम्हें बाज़ार में बेच लाती। और फिर तुम लोगों की बात मैं नहीं चलाती। सच भी हो सकती है।

बदरी॰--जरा प्रेमा को बुला लो, पूछ लेना ही अच्छा है।

देवकी--( झुँझलाकर ) उससे क्या पूछोगे और वह क्या कहेगी, यही मेरी समझ में नहीं आता। मुझसे जब इस विषय में बातें हुई है, वह यही कहती रही है कि मैं क्वारी रहूँगी। वही फिर कहेगी। मगर इतना मैं जानती हूँ कि जिसके साथ तुम बात पक्की कर दोगे,

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